भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व को उत्तरप्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म भी अयोध्या में हुआ था। आक्रांताओं के आने से पहले यहां हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के सैकड़ों मंदिर और स्तूप थे।
भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व को उत्तरप्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म भी अयोध्या में हुआ था। आक्रांताओं के आने से पहले यहां हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के सैकड़ों मंदिर और स्तूप थे।
तथ्य कहते हैं कि विदेशी आक्रांता बाबर के आदेश पर सन् 1527-28 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण किया गया। कालांतर में इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया।
जब मंदिर तोड़ा जा रहा था, तब जन्मभूमि मंदिर पर सिद्ध महात्मा श्यामनंदजी महाराज का अधिकार था। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्रीनारायण ने मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध लड़ा, जिसमें हजारों वीर सैनिक शहीद हो गए।
इतिहासकार कनिंघम ने अपने "लखनऊ गजेटियर" के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखा है कि 1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात् मीर बकी ने अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफलता प्राप्त की।
उस समय अयोध्या से 6 मील की दूरी पर सनेथू नाम के एक गांव के पं. देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आसपास के गांवों सराय, सिसिंडा, राजेपुर, आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया और फिर से युद्ध हुआ, जिसमें पं. देवीदीन पाण्डेय सहित हजारों हिन्दू शहीद हो गए और बाबर की सेना जीत गई।
पाण्डेयजी की मृत्यु के 15 दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ हजारों सैनिकों के साथ मीरबाकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया, लेकिन महाराज सहित जन्मभूमि के रक्षार्थ सभी वीरगति को प्राप्त हो गए।
स्व. महाराज रणविजय सिंह की पत्नी रानी जयराज कुमारी हंसवर ने अपने पति की वीरगति के बाद खुद जन्मभूमि की रक्षा के कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और 3,000 नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा।
स्वामी महेश्वरानंदजी ने संन्यासियों की सेना बनाई। रानी जयराज कुमारी हंसवर के नेतृत्व में यह युद्ध चलता रहा। लेकिन हुमायूं की शाही सेना से इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ शहीद हो गई और जन्मभूमि पर पुनः मुग़लों का अधिकार हो गया।
मुग़ल शासक अकबर के काल में शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी, इसलिए अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर 3 फीट का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा। यही क्रम शाहजहां के समय भी चलता रहा।
फिर औरंगजेब के काल में भयंकर दमनचक्र चलाकर उत्तर भारत से हिन्दुओं के संपूर्ण सफाए का संकल्प लिया गया। उसने लगभग 10 बार अयोध्या में मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाकर यहां के सभी प्रमुख मंदिरों और उनकी मूर्तियों को तोड़ डाला। औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्रीरामदासजी महाराज के शिष्य श्रीवैष्णवदासजी ने जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 30 बार आक्रमण किए।
नासिरुद्दीन हैदर के समय में, मकरही के राजा के नेतृत्व में, जन्मभूमि को पुन: उसके पूर्व रूप में लाने के लिए हिन्दुओं ने तीन बार आक्रमण किया, जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गए। इस युद्ध में भीती, हंसवर, मकरही, खजूरहट, दीयरा, अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि शामिल थे। हिन्दू सेना और वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना ने मिलकर शाही सेना को हराया और जन्मभूमि पर पुन: हिन्दुओं का नियंत्रण हुआ। लेकिन कुछ दिनों बाद, विशाल शाही सेना ने पुन: जन्मभूमि पर अधिकार किया और हजारों रामभक्तों को कत्ल कर दिया गया।
नवाब वाजिद अली शाह के समय में फिर से हिन्दुओं ने जन्मभूमि को उद्धार करने के लिए आक्रमण किया। फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा, "इस संग्राम में भयंकर खून-खराबा हुआ। 2 दिन और रात तक होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं ने श्रीराम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। इतिहासकार कनिंघम लिखता है कि यह अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू-मुस्लिम बलवा था। हिन्दुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर से बनाया। चबूतरे पर 3 फीट ऊंचे खस के टाट से एक छोटा-सा मंदिर बनवाया गया जिसमें पुन: रामलला की स्थापना की गई। लेकिन बाद के मुग़ल राजाओं ने इस पर पुन: अधिकार कर लिया।
1853 में हिन्दुओं का आरोप था कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिन्दुओं और मुस्लिमानों के बीच पहली हिंसा हुई।
इसके बाद सन् 1857 की क्रांति में बहादुरशाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया। कुछ कट्टरपंथी मुस्लिमों को यह बात स्वीकार नहीं हुई और उनके विरोध के चलते 18 मार्च सन् 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ में दोनों को एकसाथ अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया।
विवाद के चलते 1859 में ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
19 जनवरी 1885 को हिन्दू महंत रघुबीर दास ने पहली बार इस मामले को फैजाबाद के न्यायाधीश पं. हरिकिशन के सामने रखा था। इस मामले में कहा गया था कि मस्जिद की जगह पर मंदिर बनवाना चाहिए, क्योंकि वह स्थान प्रभु श्रीराम का जन्म स्थान है।
वर्ष 1947 में भारत सरकार ने मुसलमानों को विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया जबकि हिन्दू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।
1949 में भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। कहते हैं कि कुछ हिन्दूओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाई थीं। मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया। सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया। 1984 में कुछ हिन्दुओं ने विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में भगवान राम के जन्मस्थल को "मुक्त" करने और वहां राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया। बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया।
1986 में जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया।
1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए एक गहन पहल शुरू की, और विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रखी। इसी साल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोला जाना चाहिए और यह जगह हमेशा के लिए हिन्दुओं को सौंपी जानी चाहिए।
22 अक्टूबर 1990 को, हजारों रामभक्तों ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा लगाई गई बाधाओं को पार करके अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज लहराया। लेकिन 2 नवंबर 1990 को, मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं और सरयू तट रामभक्तों की लाशों से भरा गया। इस हत्याकांड के बाद, उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा।
23 इसके बाद, लाखों रामभक्त 6 दिसंबर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और बाबरी ढांचा 6 दिसंबर 1992 को गिराया गया, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में दंगे हुए। इसी मुद्दे पर विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, भाजपा नेता आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, और मध्यप्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती सहित 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाया गया था।
6 दिसंबर 1992 को, जब विवादित ढांचा गिराया गया, राज्य में कल्याण सिंह की सरकार थी। उस दिन सुबह करीब 10.30 बजे हजारों-लाखों के संख्या में कारसेवक पहुंचने लगे, और दोपहर के 3 बजकर 40 मिनट में पूरा विवादित ढांचा जमींदोज हो चुका था। भीड़ ने उसी जगह पूजा-अर्चना की और "राम शिला" की स्थापना कर दी।
1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए एक गहन पहल शुरू की, और विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रखी। इसी साल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोला जाना चाहिए और यह जगह हमेशा के लिए हिन्दुओं को सौंपी जानी चाहिए।
22 अक्टूबर 1990 को, हजारों रामभक्तों ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा लगाई गई बाधाओं को पार करके अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज लहराया। लेकिन 2 नवंबर 1990 को, मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं और सरयू तट रामभक्तों की लाशों से भरा गया। इस हत्याकांड के बाद, उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा।
23 इसके बाद, लाखों रामभक्त 6 दिसंबर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और बाबरी ढांचा 6 दिसंबर 1992 को गिराया गया, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में दंगे हुए। इसी मुद्दे पर विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, भाजपा नेता आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, और मध्यप्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती सहित 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाया गया था।
6 दिसंबर 1992 को, जब विवादित ढांचा गिराया गया, राज्य में कल्याण सिंह की सरकार थी। उस दिन सुबह करीब 10.30 बजे हजारों-लाखों के संख्या में कारसेवक पहुंचने लगे, और दोपहर के 3 बजकर 40 मिनट में पूरा विवादित ढांचा जमींदोज हो चुका था। भीड़ ने उसी जगह पूजा-अर्चना की और "राम शिला" की स्थापना कर दी।
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The Ram Mandir Darshan, located in Ayodhya, India, is a sacred pilgrimage site for devotees of Lord Rama. It holds immense cultural, historical, and religious significance for millions of people. Here, we provide a general overview of frequently asked questions (FAQ) to help you understand the essential aspects of Ram Mandir Darshan.
Ram Mandir Darshan refers to the act of visiting the temple dedicated to Lord Rama in Ayodhya. It involves paying homage, seeking blessings, and witnessing the grandeur of the newly constructed Ram Mandir.
The Ram Mandir is situated in Ayodhya, Uttar Pradesh, India, near the banks of the Sarayu River. It is built at the exact spot believed to be the birthplace of Lord Rama.
The temple is constructed at the site of the Babri Masjid, which was demolished in 1992. The construction of the Ram Mandir marks the end of a long-standing legal and socio-political dispute, reaffirming the faith and sentiments of millions of Hindus.
The Bhoomi Pujan (ground-breaking ceremony) for the Ram Mandir took place on August 5, 2020. The temple construction is an ongoing process, and devotees are allowed to visit and offer their prayers.
Stay updated with the latest developments, events, and controversies surrounding this iconic temple. Our news coverage provides real-time updates on construction progress, religious ceremonies, and the impact of the temple on the cultural and political landscape.
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