अयोध्या, भगवान राम की नगरी, हजारों महापुरुषों की कर्मभूमि के रूप में अभिवाद्य है। इस पवित्र भूमि का हिन्दू समुदाय के लिए अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यहां पर भगवान राम का अवतरण हुआ था और इसे "राम जन्मभूमि" कहा जाता है।
अयोध्या, भगवान राम की नगरी, हजारों महापुरुषों की कर्मभूमि के रूप में अभिवाद्य है। इस पवित्र भूमि का हिन्दू समुदाय के लिए अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यहां पर भगवान राम का अवतरण हुआ था और इसे "राम जन्मभूमि" कहा जाता है।
इस अद्वितीय स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ था, जो उस समय के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक था। यह मंदिर भगवान राम के अद्वितीय जीवन और उनकी दिव्यता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए समर्पित था। दुःखद है कि इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया, लेकिन इसका इतिहास और महत्व आज भी लोगों की चेतना में है। इस मंदिर का निर्माण भगवान राम की भक्ति, समर्पण, और पूजा की भावना से हुआ था।
शोध के अनुसार, भगवान राम का जन्म सन् 5114 ईसा पूर्व में हुआ था और इस अद्वितीय घटना का साकारात्मक साक्षात्कार चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
अगस्त 2003 में पुरातात्विक विभाग के सर्वे में यह कहा गया था कि जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
अयोध्या पहले कौशल जनपद की राजधानी थी। वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। रामायण में अयोध्या नगरी के सरयु तट पर बसे होने और उस नगरी के भव्य एवं समृद्ध होने का उल्लेख मिलता है। वहां चौड़ी सड़के और भव्य महल थे। बगीचे और आम के बाग थे और साथ ही चौराहों पर लगने वाले बड़े बड़े स्तंभ थे। हर व्यक्ति का घर राजमहल जैसा था। यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं। इन्द्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था।
विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था, जिसमें उसे सेनापति कहा गया है और उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।
उसके बाद आता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व, उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंचे। उन्हें इस भूमि में कुछ अद्वितीय घटनाएं दिखाई देने लगीं। इस पर विक्रमादित्य ने खोजना शुरू किया और पास के योगी और संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। इन संतों के मार्गदर्शन में, सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थरों से बने 84 स्तंभों पर एक विशाल मंदिर की रचना करवाई। इस मंदिर की भव्यता देखकर हर किसी को आश्चर्य होता था।
विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उनमें से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था, जिसमें उसे सेनापति कहा गया था, और उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।
इसके बाद कहा जाता है कि चीनी भिक्षु फा-हियान ने यहां देखा कि कई बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया था। इस क्षेत्र में 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग ने भी अपनी यात्रा की थी। उनके अनुसार, यहां 20 बौद्ध मंदिर थे और 3,000 भिक्षु यहां निवास करते थे। इसके अलावा, यहां एक प्रमुख और भव्य हिन्दू मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे, जिसे राम मंदिर कहा जाता था।
इसके बाद, 11वीं शताब्दी में, कन्नौज के नरेश जयचंद आया और उन्होंने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद, जयचंद का अंत हो गया। इसके बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पूजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन 14वीं सदी तक, वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए। विभिन्न आक्रमणों के बाद भी, सभी झंझावातों का सामना करते हुए, श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहा जाता है कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था। अंत में, 1527-28 में अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह पर बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक मौजूद रही। बाबरनामा के अनुसार, 1528 में अयोध्या पर किए गए प्रवास के दौरान बाबर ने मस्जिद निर्माण का आदेश दिया था।
हिंदुओं का प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थल, अयोध्या, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह नगर पवित्र सरयू नदी के तट पर बसा हुआ है और रामायण के अनुसार इसकी स्थापना मनु ने की थी। अयोध्या हिन्दू धर्म के सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है, जिसमें अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका, और द्वारका शामिल हैं। अयोध्या का इतिहास बहुत दिलचस्प है और माना जाता है कि भगवान राम का जन्म इसी नगर में हुआ था। रामायण के काव्य महाकाव्य में अयोध्या को राजा दशरथ की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है, जहां भगवान राम ने अपने चरित्रवान और प्रेरणादायक जीवन का आरंभ किया। अयोध्या में विराजमान हनुमान मंदिर, कानक भवन, श्रीराम की जन्मभूमि, अयोध्या महात्म्या, और अयोध्या विशेषज्ञ तात्कालिक घटनाओं का केंद्र हैं। भगवान राम के भव्य मंदिर के लिए चर्चा हो रही है और 5 अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन किया जाएगा, जिससे यह स्थल और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा। इस घड़ी में यहां की भौतिक और आध्यात्मिक धारोहर विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं जो इस क्षेत्र को एक अनूठा और प्राचीन स्थान बनाते हैं।
अयोध्या, पारंपरिक इतिहास में, कोसल राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी। गौतमबुद्ध के समय में कोसल को दो भागों में विभाजित किया गया था - उत्तर कोसल और दक्षिण कोसल, जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी। वेदों में अयोध्या को ईश्वर की नगरी बताया गया है, और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में योगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है - "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या"। यह नगरी सरयू के तट पर बारह योजन लम्बाई और तीन योजन चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरों का शहर है, और यहां कई धार्मिक स्थल हैं जो इसकी महत्वपूर्णता को बढ़ाते हैं। यहां का इतिहास हिंदू और जैन धरोहर से भी भरा हुआ है, जिसमें चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था, जैसे कि ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, और अनंतनाथ। इसके अलावा, जैन और वैदिक दोनों मतों के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का भी जन्म इसी भूमि पर हुआ था। यहां का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसे एक अद्वितीय और रमणीय स्थान बनाता है।
भगवान राम का जन्म स्थान, राम जन्मभूमि (Ram Janmabhoomi), इस स्थान को श्रीराम का जन्म स्थान माना जाता है। राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था।
भगवान श्रीराम के बाद, उनके पुत्र लव ने श्रावस्ती में नगर बसाया और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था और इसके बाद इसका अस्तित्व अगले 44 पीढ़ियों तक बरकरार रहा।
महाभारत के युद्ध के बाद, अयोध्या उजड़-सी गई लेकिन उस दौरान भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था और लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा।
तथ्यों के मुताबिक, सन् 1527-28 में अयोध्या में बाबर के आदेश पर राम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण किया गया। इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया।
अयोध्या राम मंदिर: श्रीराम जन्मभूमि केस देश के सबसे लंबे मामलों में से एक है। लेकिन 5 अगस्त 2020 को यह दिन सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। 1528 से 2020 तक, अयोध्या के पूरे 492 सालों के इतिहास में कई मोड़ आए हैं।
अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास का उद्गम ब्रह्माजी के मानस पुत्र मनु से ही सम्बद्ध है. जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था, उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ.
बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने "ग्रह मंजरी"आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई.पू. 2200 के आसपास माना है. इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं.
अयोध्या का महत्व इस बात में भी निहित है कि जब भी प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होता है तब उसमें सर्वप्रथम अयोध्या का ही नाम आता है: "अयोध्या मथुरा माया काशि काँची ह्य्वान्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका."
यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन प्राचीन तीर्थों में 'प्रयाग'की गणना नहीं है! अयोध्या के महात्म्य के विषय में यह और स्पष्ट करना समीचीन होगा कि जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे.
इन 24 तीर्थंकरों में से भी सर्वप्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है.
बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था.
ये हिन्दू धर्म और उसके प्रतिरोधी सम्प्रदायों- जैन और बौद्धों का भी पवित्र धार्मिक स्थान था.
मध्यकालीन भारत के प्रसिद्ध संत रामानंद जी का जन्म भले ही प्रयाग क्षेत्र में हुआ हो, रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही हुआ.
उत्तर भारत के तमाम हिस्सों में जैसे कोशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किए थे.
जहाँ तक मनु द्वारा स्थापित अयोध्या का प्रश्न है, हमें वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि वह 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी.
सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है. उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी.
संभवतः उसने बौद्ध मतावलंबियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो.
आईन-ए-अकबरी में इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस उल्लिखित है.
सृष्टि के प्रारम्भ से त्रेतायुगीन रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं. इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों 'महाभारत' के युद्ध में मारा गया था.
फिर लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है.
फिर यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा. अंत में यहां महमूद गज़नी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की. वो बहराइच में 1033 ई. में मारा गया था.
इसके बाद तैमूर के पश्चात जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया. विशेषरूप से शक शासक महमूद शाह के शासन काल में 1440 ई. में.
1526 ई. में बाबर ने मुग़ल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहाँ आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान ढहा दी गई.
अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक पुनर्गठन के फलस्वरूप आए राजनीतिक स्थायित्व के कारण अवध क्षेत्र का महत्व बहुत बढ़ गया था. इसके भू-राजनीतिक एवं व्यापारिक कारण भी थे.
तैमूर के आगमन के बाद, जब जौनपुर में शक वंश का राज्य स्थापित हुआ, तो अयोध्या शर्कियों के अधीन आ गई थी। विशेष रूप से, शक शासक महमूद शाह के शासनकाल में, जो 1440 ई. में था, अयोध्या उनके शासन क्षेत्र में शामिल हो गई थी। 1526 ई. में, बाबर ने मुग़ल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहाँ आक्रमण करके एक मस्जिद का निर्माण करवाया, जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान ढहा दी गई। अकबर के शासनकाल में, प्रशासनिक पुनर्गठन के परिणामस्वरूप, अवध क्षेत्र का महत्व बहुत बढ़ गया था जिसमें राजनीतिक स्थायित्व का भी महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसके भू-राजनीतिक और व्यापारिक कारण भी थे।
अकबर ने अपने साम्राज्य को 1580 ई. में 12 सूबों में विभक्त करने के बाद अवध सूबा की स्थापना की, जो गंगा के उत्तरी भाग को पूर्वी क्षेत्रों और दिल्ली-आगरा को सुदूर बंगाल से जोड़ने वाले मार्ग से गुज़रता था। अयोध्या इस सूबे की राजधानी बनी और इसे अकबर का महत्वपूर्ण शासकीय केंद्र बनाया गया।
अयोध्या के प्रामाणिक इतिहासकार लाला सीताराम 'भूप' के अनुसार, जो अयोध्या के मूल निवासी थे, उन्होंने अपने नाम से पहले हमेशा "अवध वासी" कहकर अपने गर्व का संकेत किया। 1731 ई. में मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने अवध को नियंत्रित करने के लिए अवध सूबा की स्थापना की और उसे शिया दीवान-वज़ीर सआदत खां को सौंपा। उसके बाद सफदरजंग और उसके पुत्र शुजा-उद्दौलाह के शासनकाल में अयोध्या में धार्मिक स्वतंत्रता मिली, और इसके बाद फैज़ाबाद नगर की स्थापना हुई।
तैमूर के आक्रमण के पश्चात, जब जौनपुर में शक वंशी शासकों ने अपना साम्राज्य स्थापित किया, तो अयोध्या उनके अधीन आ गई थी। विशेषत: शक शासक महमूद शाह के शासनकाल में, जो 1440 ई. में था, अयोध्या उनके शासन क्षेत्र में शामिल हो गई थी। 1526 ई. में, बाबर ने मुघ़ल साम्राज्य की नींव रखी, और उसके सेनापति ने 1528 में यहाँ आक्रमण करके एक मस्जिद का निर्माण करवाया, जिसके बारे में 1992 में हुए राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान विवाद उत्पन्न हुआ था और जो अंत में ढह गई। अकबर के शासनकाल में, प्रशासनिक पुनर्गठन के परिणामस्वरूप, अवध क्षेत्र का महत्व बहुत बढ़ गया था। इसमें राजनीतिक स्थायित्व का भी महत्वपूर्ण हिस्सा था, और इसके भू-राजनीतिक एवं व्यापारिक कारण भी थे।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 सूबों में विभक्त करने के बाद अवध को एक सूबा बनाया, जिसने उत्तरी गंगा क्षेत्र को पूर्वी क्षेत्रों से जोड़ने का कार्य किया। इस प्रकार, अयोध्या इस समय सूबे की राजधानी बन गई थी। महत्वपूर्ण है कि आधुनिक भारत में अयोध्या के प्रामाणिक इतिहासकार लाला सीताराम 'भूप' के अनुसार, जो अयोध्या के मूल निवासी थे, उन्होंने अपने नाम से पहले हमेशा "अवध वासी" कहकर अपने गर्व का संकेत किया। 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद, मुग़ल साम्राज्य की पतन की शुरुआत हुई और विभिन्न क्षेत्रीय राज्य उभरने लगे थे। इस दौरान, अवध में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई। 1731 ई. में मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अवध का सूबा अपने शिया दीवान-वज़ीर सआदत खां को सौंपा।
उसका नाम मोहम्मद अमीन बुर्हानुल मुल्क था और उसने अपने सूबे के दीवान दयाशंकर के माध्यम से यहाँ का प्रबंधन संभाला। इसके बाद उसका दामाद मंसूर अली 'सफदरजंग' की उपाधि के साथ अवध का शासक बना। उसका प्रधानमंत्री या प्रांतीय दीवान इटावा का कायस्थ नवल राय था। इसी सफदरजंग के समय में अयोध्या के निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली और इसके बाद उसका पुत्र शुजा-उद्दौलाह अवध का नवाब-वज़ीर हुआ (1754-1775 ई.) और उसने अयोध्या से 3 मील पश्चिम में फैज़ाबाद नगर बसाया। यह नगर अयोध्या से अलग और लखनऊ की पूर्व छाया बना और वास्तविकता में इसी शुजा-उद्दौलाह के मरण के बाद (1775 ई.) फैज़ाबाद उनकी विधवा बहू बेगम (जिनकी मृत्यु 1816 ई. में हुई) की जागीर के रूप में रही और उनके पुत्र आसफ़-उद्दौल्लाह ने नया नगर लखनऊ बसाकर अपनी राजधानी वहाँ स्थानांतरित कर ली। ये 1775 ई. की बात है।
अयोध्या राम जन्मभूमि मामला भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और घातक घटना है, जिसमें धर्म, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं का मिलन हो रहा है। इस मामले का इतिहास बहुत पुराना है और 1528 से लेकर 2023 तक कई मोड़ आए हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 9 नवंबर 2019 का है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। राम जन्मभूमि का इतिहास वेदों, पुराणों, रामायण, और महाभारत जैसी धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। यह एक ऐसी स्थान है जहां हिन्दू धर्म के अनुयायियों के अनुसार प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था।
1528 में, बाबर नामक मुघ़ल सम्राट ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई, जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है। इससे यह मामला भूमिगत हो गया और इस पर समझौते और विवाद से भरा रहा। इस विवाद का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम 9 नवंबर 2019 को हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। उस दिन, सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि को हिन्दुओं को सौंपने का फैसला किया। इस फैसले के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष संवैधानिक बेंच को भी बनाया, जिसने इस अत्यंत महत्वपूर्ण और विवादास्पद मामले का समाधान किया। इस निर्णय से पहले, इस मामले में विभिन्न समयों पर अनेक याचिकाएं दाखिल की गई थीं, और यह आपत्तिजनक समझाया जाता था।
मुग़ल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने विवादित जगह पर मस्जिद का निर्माण कराया। इस स्थान को लेकर हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा यह दावा किया कि यहां भगवान राम की जन्मभूमि है और इस स्थान पर एक प्राचीन मंदिर भी था। हिंदू पक्ष के लोगों ने, मस्जिद में बने तीन गुंबदों में एक गुंबद के नीचे भगवान राम का जन्मस्थान बताया।
श्रीराम जन्मभूमि पर जहां मस्जिद का निर्माण किया गया, वहां के आसपास के कई स्थानों पर पहली बार 1853 में दंगे हुए। इसके बाद 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित स्थान के पास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर वहीं हिंदुओं को बाहर चबूतरे के पास पूजा करने की इजाजत दे दी।
अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि का असली विवाद 23 सितंबर 1949 को तब हुआ, जब मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। इसे लेकर हिन्दू समुदाय के लोग कहने लगे कि, यहां साक्षात भगवान राम प्रकट हुए हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया कि, किसी ने चुपके से यहां मूर्तियां रखीं। ऐसे में यूपी सरकार ने तुरंत मूर्तियों को वहां से हटाने के आदेश दिए, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट (डीएम) केके नायर ने धार्मिक भावना को ठेस पहुंचने और दंगों भड़कने के डर से इस आदेश में असमर्थता जताई। इस तरह से सरकार द्वारा इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगा दिया गया।
फैजाबाद के सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल हुई, जिनमें पहली में विवादित भूमि पर रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरी में मूर्ति रखने की इजाजत पर थी।
यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक अर्जी दाखिल की और विवादित भूमि पर पजेशन और मूर्तियों को हटाने की मांग की।
1 फरवरी 1986 में यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी और ढांचे पर लगे ताले को हटाने का आदेश दिया।
यह दंगा एतिहासिक रहा। 6 दिसंबर 1992 को वीएचपी और शिवसेना समेत कई हिंदू संगठन के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। इससे देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए और हजारों की तादाद में लोग मारे गए।
गोधरा ट्रेन जोकि हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही थी, उसमें आग लगा दी गई और करीब 58 लोग मारे गए। इसे लेकर गुजरात में भी दंगे की आग भड़क गई और दो हजार से अधिक लोग इस दंगे में मारे गए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसले पर विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया और भाजपा के कई नेताओं पर आपराधिक साजिश आरोप बहाल किए गए।
8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा और 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही को खत्म करने के आदेश दिए। इसके बाद 1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट पेश की और 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता पैनल मामले में समाधान निकालने कामयाब नहीं रहें। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले को लेकर प्रतिदिन सुनाई होने लगी और 16 अगस्त 2019 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच ने श्रीराम जन्मभूमि मामले में फैसला किया। बेंच ने 2.77 एकड़ भूमि को हिंदू पक्ष को और मस्जिद के लिए 5 एकड़ अलग से ज़मीन को मुस्लिम पक्ष को सौंपने का आदेश दिया।
25 मार्च 2020 को, 28 सालों के बाद, रामलला टेंट से बाहर निकलकर फाइबर मंदिर में स्थानांतरित हुए और इसके बाद 5 अगस्त को भूमि पूजन किया गया।
अब, अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि पर एक शानदार मंदिर तैयार है। 22 जनवरी 2024 को रामलला के मंदिर का उद्घाटन होगा। इससे, सालों साल चले विवाद का समापन होगा और रामलला की पूजा-अराधना में नए युग की शुरुआत होगी।
उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों, जैसे कि कौशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि, में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने अपना शासन स्थापित किया। इस इतिहास के साथ अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) का संबंध ब्रह्मा के पुत्र मनु से है, जिन्होंने यहाँ की स्थापना की। प्रतिष्ठानपुर की स्थापना और इसके चंद्रवंशी शासकों का संबंध मनु के पुत्र इला से है, जो शिव के श्राप से उत्पन्न हुई थीं। इसी प्रकार, अयोध्या और उसके सूर्यवंश का आरंभ मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से हुआ था।
भगवान श्रीराम के बाद, उनके पुत्र लव ने श्रावस्ती को बसाया और इसे अगले 800 वर्षों तक स्वतंत्र रूप से उल्लेख किया गया। कहा जाता है कि भगवान राम के पुत्र कुश ने एक बार फिर राजधानी अयोध्या का निर्माण किया। इसके बाद यह सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक अस्तित्व में रहा। रामचंद्र से महाभारत तक और बहुत बाद में हमें अयोध्या के सूर्यवंशी के इक्ष्वाकु के संदर्भ मिलते हैं। इस वंश के बृहद्रथ को 'महाभारत' के युद्ध में अभिमन्यु ने मार डाला था। महाभारत युद्ध के बाद, अयोध्या वीरान हो गई थी, लेकिन उस अवधि ने श्रीराम जन्मभूमि के अस्तित्व को भी संरक्षित रखा, जो लगभग 14वीं शताब्दी तक बरकरार रहा।
विद्वानों जैसे बेंटले और परजितर के अनुसार, 'ग्रह मंजरी' जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर, इस वंश की स्थापना की तिथि लगभग 2200 ईसा पूर्व हो सकती है। इस वंश में राजा रामचन्द्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक थे।
बृहद्रथ के बाद, यह शहर बहुत काल तक मगध के गुप्त और कन्नौज शासकों के अधीन रहा। अंत में, महमूद गजनी के भतीजे सैय्यद सालार ने इसे तुर्क शासन के अधीन किया। उनका अंत 1033 ई. में बहराइच में हुआ। इसके बाद, तैमूर के आगमन के बाद, जब जौनपुर में शक साम्राज्य की स्थापना हुई, तो अयोध्या शारिकियों के शासन में आ गया। इस प्रकार, विशेष रूप से 1440 ई. में शक शासक मुहम्मद शाह के शासनकाल में। बाबर ने 1526 ई. में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की, और उसके सेनापतियों ने 1528 में एक मस्जिद बनाने के लिए यहां हमला किया, जिसे 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान ध्वस्त कर दिया गया था।
यह स्थान भगवान राम की जन्मभूमि है, और इसका इतिहास ऐतिहासिक साक्षात्कारों से प्रमाणित है। शोध बताते हैं कि भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व चैत्र मास की नवमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि 1528 में बाबर के सेनापति मीरबाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थित मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई गई थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में इस स्थल को मुक्त करने और एक नए मंदिर की निर्माण के लिए एक लंबा आंदोलन चलाया गया। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिरा दिया गया और वहां श्रीराम का अस्थाई मंदिर बना दिया गया।
6 दिसंबर 1992 को, आज से 29 साल पहले, अयोध्या में एक ऐतिहासिक घटना घटी जिसने देशभर में गहरा प्रभाव डाला। इस दिन, लाखों कारसेवकों ने अयोध्या के बाबरी मस्जिद को विवादित ढांचा गिरा दिया। अयोध्या के इस स्थल पर बरसों से विवाद था और भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मानवाए जाने की मांग थी।
इस पूर्वाग्रह में, भाजपा नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन शुरू किया था। वह इस आंदोलन के द्वारा राष्ट्रीय चेतना में भगवान राम के अद्वितीय स्थान की मांग कर रहे थे। 5 दिसंबर 1992 की सुबह से ही, अयोध्या में विवादित ढांचे के पास कारसेवकों की भीड़ जुटने शुरू हो गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ भजन-कीर्तन करने की अनुमति दी थी, लेकिन अगली सुबह यानी 6 दिसंबर को भीड़ उग्र हो गई और बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया। कहते हैं कि उस समय 1.5 लाख से ज्यादा कारसेवक वहां मौजूद थे।
इस घटना ने देशभर में असमंजस और विभाजन की भावना को उत्तेजित किया। इसे एक अधिकारिक रूप से 'बाबरी मस्जिद विध्वंस' कहा जाता है और इसके परिणामस्वरूप, विवाद और विभाजन के कारण बहुत सारे चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
6 दिसंबर 1992 को घटित बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और इसके परिणामस्वरूप, एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल हुई। इस दंगे के चलते, मामले की FIR दर्ज हुई और 49 लोगों पर आरोप लगाए गए। इनमें लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, चंपत राय, कमलेश त्रिपाठी जैसे भाजपा और विहिप के नेता भी शामिल थे। यह मामला 28 साल तक कोर्ट में चलता रहा, और 30 सितंबर 2021 को लखनऊ की CBI कोर्ट ने सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। फैसले के समय तक, 49 में से 32 आरोपी ही बचे थे, बाकी 17 आरोपियों का निधन हो चुका था।
9 नवंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने भी जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला किया था, जिसमें जमीन का मालिकाना राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में सुनाया गया और मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग से देने का आदेश था। 5 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन किया।
इस दिन, 1956 में डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का निधन भी हुआ था। डॉ. अंबेडकर ने हमारे देश का संविधान बनाने में अहम भूमिका निभाई और उन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से सम्मानित किया जाता है। उन्होंने दलितों के अधिकारों की सुरक्षा और समर्थन के लिए संघर्ष किया और उन्हें सामाजिक समानता के माध्यम से गर्वित किया।
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The Ram Mandir Darshan, located in Ayodhya, India, is a sacred pilgrimage site for devotees of Lord Rama. It holds immense cultural, historical, and religious significance for millions of people. Here, we provide a general overview of frequently asked questions (FAQ) to help you understand the essential aspects of Ram Mandir Darshan.
Ram Mandir Darshan refers to the act of visiting the temple dedicated to Lord Rama in Ayodhya. It involves paying homage, seeking blessings, and witnessing the grandeur of the newly constructed Ram Mandir.
The Ram Mandir is situated in Ayodhya, Uttar Pradesh, India, near the banks of the Sarayu River. It is built at the exact spot believed to be the birthplace of Lord Rama.
The temple is constructed at the site of the Babri Masjid, which was demolished in 1992. The construction of the Ram Mandir marks the end of a long-standing legal and socio-political dispute, reaffirming the faith and sentiments of millions of Hindus.
The Bhoomi Pujan (ground-breaking ceremony) for the Ram Mandir took place on August 5, 2020. The temple construction is an ongoing process, and devotees are allowed to visit and offer their prayers.
Stay updated with the latest developments, events, and controversies surrounding this iconic temple. Our news coverage provides real-time updates on construction progress, religious ceremonies, and the impact of the temple on the cultural and political landscape.
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